Wednesday, April 27, 2011

साभार

आज एक वीर ने अदालत के बाहर कलमाड़ी का चप्पल से स्वागत किया. भ्रस्टाचारियों को मालूम पड़ गया होगा की जल्द ही उन सब की यही दुर्गति होने वाली है. वह चप्पल भारत के लोकतंत्र के इतिहास में अमर हो गयी और वह व्यक्ति भी.
Krishna Mohan Mishra26 अप्रैल 20:44
आज एक वीर ने अदालत के बाहर कलमाड़ी का चप्पल से स्वागत किया. भ्रस्टाचारियों को मालूम पड़ गया होगा की जल्द ही उन सब की यही दुर्गति होने वाली है. वह चप्पल भारत के लोकतंत्र के इतिहास में अमर हो गयी और वह व्यक्ति भी.

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यूरोप का विज्ञान ज्ञान-2
गेलीलियो के पहले सारे यूरोप में मान्यता थी कि भारी वजन वाली वस्तु हलकी वजन वाली वस्तु से अधिक वेग से गिरेगी, क्योंकि अरस्तु ने कहा था कि एक पौंड तथा दस पौंड का पत्थर यदि उपर से फेंका जाये तो दस पौंड का पत्थर दस गुना वेग से निचे गिरेगा !गैलिलियो ने इस मान्यता को चुनौती दी और कहा वस्तु चाहे एक पौंड कि हो या दस पौंड की वायु का प्रतिरोध यदि छोड़ दिया जाय तो दोनों एक साथ जमीन पर गिरेंगी ! जैसे ही गलीलियो ने इस मान्यता का प्रतिपादन किया, सारा शहर उस पर टूट पड़ा ! लोगों ने उससे पूछना शुरू किया- तुम अरस्तु से अधिक समझदार समझते हो अपने आपको ? इस पर गेलीलियो ने कहा, जो मैंने कहा वह करके बता सकता हूँ ! इसे सुन सब लोगों में आश्चर्य और उत्सुकता जगी और जिस दिन गेलीलियो अपनी बात को प्रयोग द्वारा सिद्ध करने वाला था, उस दिन पिसा की प्रसिद्द मीनार के पास सारा नगर उमड़ पड़ा ! गेलीलियो मीनार पर चढ़ा, सारे लोग साँस रोके उपर देखने लगे ! इसी समय गेलीलियो ने एक और दस पौंड वजन के दोनों पत्थर एक साथ छोड़े और आश्चर्य चकित लोगों ने देखा, दोनों पत्थर एक साथ जमीन पर गिरे ! प्रत्यक्ष अपनी आँखों से यह यह प्रयोग देखने के बाद लोगों की प्रतिक्रिया थी, गेलीलियो जरुर काला जादू जानता है, अन्यथा अरस्तु कभी गलत हो ही नहीं सकते हैं ! यह घटना बताती है की आज से ४५० वर्ष पूर्व यूरोप में विज्ञान के बारे में मानसिकता कैसी थी ?
क्रमशः जारी.......

Saturday, April 9, 2011

अनुपम सार है कल्पना

सृष्टि का अनुपम सार है कल्पना

कल्पना कभी मरती नहीं
नव जीवन का संचार करती है
घनघोर अँधेरी रात में भी
नव सुबह का श्रिंगार करती है
जीवन एक शरीर है
कल्पना इसकी आत्मा
कल्पना तो हर मन में विहार करती है
कल्पना ही राग को मल्हार करती है
सृष्टि का नव निर्माण करती है
कल्पना कभी मरती नहीं !
कल्पना भी क्या चीज है
ज्यों बुलबुला हो पानी का
पल में बनती फिर फूट जाती है
कभी तो बड़ा दिल दुखाती है
पर मन में ना हो कल्पना जिसके
बिन मांझी जीवन नैया डूब जाती है
मौजो पे बहती एक अविचल धार है कल्पना
सृष्टि का अनुपम सार है कल्पना
तपस्वी योगी को स्वीकार है कल्पना
मन के सुख दुःख का उपहार है कल्पना
इस्वर को भी तुझसे प्यार है कल्पना
यह कविता क्यों ? कल्पना ही सार है बाकी असार है !
सृष्टि तो कल्पना की पुत्री है !
अरविन्द योगी ०८/०४/२०११