Saturday, April 9, 2011

अनुपम सार है कल्पना

सृष्टि का अनुपम सार है कल्पना

कल्पना कभी मरती नहीं
नव जीवन का संचार करती है
घनघोर अँधेरी रात में भी
नव सुबह का श्रिंगार करती है
जीवन एक शरीर है
कल्पना इसकी आत्मा
कल्पना तो हर मन में विहार करती है
कल्पना ही राग को मल्हार करती है
सृष्टि का नव निर्माण करती है
कल्पना कभी मरती नहीं !
कल्पना भी क्या चीज है
ज्यों बुलबुला हो पानी का
पल में बनती फिर फूट जाती है
कभी तो बड़ा दिल दुखाती है
पर मन में ना हो कल्पना जिसके
बिन मांझी जीवन नैया डूब जाती है
मौजो पे बहती एक अविचल धार है कल्पना
सृष्टि का अनुपम सार है कल्पना
तपस्वी योगी को स्वीकार है कल्पना
मन के सुख दुःख का उपहार है कल्पना
इस्वर को भी तुझसे प्यार है कल्पना
यह कविता क्यों ? कल्पना ही सार है बाकी असार है !
सृष्टि तो कल्पना की पुत्री है !
अरविन्द योगी ०८/०४/२०११

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